JATRA BHAGAT जतरा भगत



जतरा भगत की जीवनी 

जतरा भगत उर्फ जतरा का जन्म सितम्बर 1888 में झारखण्ड के गुमला जिला के बिष्णुपुर थाना के चिंगरी नवाटोली गाँव में हुआ था |  उनके पिता का नाम कोदल उरांव और माँ का नाम लिबरी था | 

Jatra Bhagat ka janm kab hua tha

जतरा भगत का बचपन साधारण ढंग बीता क्योंकि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था किसी तरह उनके परिवार में जीवन व्यापन का गुजारा चलता था |  कहा जाता है की किसी तरह करके धीरे -धीरे उनका विकाश होता चला गया और वे छोटी उम्र से ही अपने हम उम्र के बड़े बच्चों तथा मित्रो से इसका स्वभाव  अलग था | 

जब भगत जी किशोरावस्था में पहुंचे तो उस समय उन्होंने स्कूली पढ़ाई के बजाय मति झाड़ -फूक की विधा सीखने के लिए निकट हेस्का ग्राम जाया करते  थे | उसी बीच उन्होंने एक पेड़ पर पक्षी का अंडा उतारने के लिए चढ़ा हो वह निचे गीर कर फूट गया जिसमे उन्हें भूर्ण पर जीवन हत्या नजर आया | उसी समय से उन्होंने जीवहत्या न करने  संकल्प लिया और  उन्हें आत्म ज्ञान का पता चला | उसी  तरह जतरा भगत के मुँह से  जो उद्धोष हुआ वह आगे  चलकर टाना पंथ बना | jatra bhagat ki jivani


  JATRA BHAGAT PHOTO

    
जतरा जी का विवाह आगे चलकर हुआ जो की उनकी पत्नी का नाम बंधनी था | जतरा  जी के चार बेटे हुए जिनका नाम   बूधेबंधू ,सुधु ,देशा तथा दो बेटियां बिरसे और बुधनी थी | देशा का विवाह पंडरी से हुआ उनका एक बेटा बिसुवा और दो बेटियाँ थी | बिसुवा की पत्नी का नाम भुधनियाऔर उनके तीन बेटे एक बेटी बिसुवा भगत सपरिवार चिंगारी नवाटोली में रहते हैं | 
जतरा भगत धीरे -धीरे करके वे आगे की ओर बढ़ते चले गए जिसमे उन्होंने गाँधी वादी  को अपनाया जिसमे समाज से सम्बन्धित कार्यो को करना शुरू किया जिसमे समाज सुधार का आंदोलन को चलाते हुए अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष किया और बिगुल बजाया | उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में छोटानागपुर के पठारों के एक व्यक्ति बिरसा मुंडा थे जो अपनी पूरी शक्ति के साथ अंग्रेजो के सत्ता विरोधी एवं जनजातीय जीवन में सामंती कुरेतियो के नाजायज हस्तक्षेप को उखाड़ फेंकने का सार्थक पहल कर रहे थे | उनका आंदोलन जनजातिये समाज एवं संस्कृति के अस्मिता की रक्षा हेतु दृढ़ संकल्पित थे ,इस आंदोलन में मुंडा न केवल बल्कि उराँव जनजाति भी थे | इन्होंने बहुत योगदान दिया पर आंदोलन समाप्त नहीं हुआ पर थोड़ा सा रुक गया | 

इधर अंग्रेजो के द्वारा धार्मिक आर्थिक सांस्कृतिक सो शोषण उत्पीड़न के कारन उरॉव जनजातियों के बीच असंतोष दिखाया जा रहा था | अंग्रेजो के इस दूर व्यवहार से उरॉंव जन बहुत ही दुखी थे अपनी ओर से कोशिस करते विद्रोह करने की लेकिन आम जनता की संगठित रूप से प्रयास नहीं होने के कारन वे आसफल हो जाते | इसी बीच उरॉंव जनजातियों के बीच जतरा उरॉंव एक नवयुजक धार्मिक ,सामाजिक ,पुनर्रचना का संकल्प लिए टाना भगत आंदोलन का महामंत्र लेकर  आया और वही युवक बाद में जतरा भगत  नाम से प्रसिद्ध हुआ | इन्होने आगे चलकर अंगेजो के खिलाफअनेको कामो को अंजाम दिया समाज से लेकर देश को आगे बढ़ाने तक | 

समाज सुधारक 

जतरा भगत ने लोगो के बीच मांस के खाने ,परोपकारी बनने ,मंदिर पान न करने ,पशु बली को रोकने ,भूत प्रेत के अस्तित्व न माने ,आँगन में तुलसी चौरा स्थापित करने ,गौ सेवा करने ,जीवन हतिया न करने इन सभो को प्रेम से रहने का उपदेश देना शुरू किया | धिरे -धिरे उनकी  बातो का असर जनजातियों पर शुरू होने लगा और देखते -देखते उनके समर्थको की अच्छी संख्या हो गई | जतरा भगत इस पंथ का नाम टाना पड़ा और इन्हे मानने वाले लोग टाना भगत कहलाये | ब्रिटिश सरकार टाना आंदोलन के बढ़ते प्रभाव से थर्र उठी सरकार ने 1916 के प्रारंभ में जतरा भगत पर नियोजित ढंग से उतेजक विचारों के प्रचार का अभियोग लगाकर उनके साथ अनुयावियो को गिरफ़तार कर लिया था | कोट द्वारा उनको वर्ष भर की कड़ी सज़ा जेल में हुई  प्रताड़ित किया बाद में जेल से आने के बाद 2 -3 माह बाद( 28 ) 1915 में वर्षीय जतरा भगत देहांत हो गया | 

योगदान 

jatra bhagat andolan

1912 -14 में उन्होंने ब्रिटिश राज और जमीदारो के खिलाफा अहिंसकअसहियोग के आंदोलन को छेड़ा और लगान सरकारी टैक्स आदि भरने तथा 'कुली '  रूप में मजदूरी करने से मना कर दिया | यह 1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए 'उलगुलान 'से प्रेरित ओपनिवेशिक और सामंत विरोधिक धार्मिक सुधारवादी आंदोलन था | आदिवासी लेखकों का दावा था की अहिंसक सत्याग्रह की व्यवहारिक समझ गाँधी ने झारखंड के टाना भगत आंदोलन से ली | 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों का बड़ा  ही हिस्सा एवं अनेक लोगों के साथ गाँधी के सत्याग्रह से जुड़कर , राष्ट्रिय स्वतंत्रता आंदोलन में वे सभी शामिल हुए | 1913 में लगातार रात  -दिन, गांव -गांव ,जगह -जगह घूमकर लोगो को जागरूक तथा जगहा  रहे थे | धर्मेश ने उसे कहा की अंग्रेजो और जमीदारो का राज ख़त्म कर दो ,उन्होंने हमारी भारत माता देश से उन्हें खींच के बहार निकला दो अंग्रेज, महाजन ,जमींदार दिकू लोग भूत  है ,इनको टानो खींचो अपनी धरती से | 

टन -टन ,टाना बाबा टाना ,भूत -भूतनी के टाना 
टाना बाबा टाना,कोना -कोच्ची भूत -भूतनी के टाना 
टाना बाबा टाना,लुकल -छिपल भूत -भूतनी के टाना


जतरा भगत जी कहते है की हे भगवान हमारे देश में जितने भी भूत प्रेत है और आदिवासियों को जितनी भी नुकसान हो रहे उन्हें आप खत्म करे और बचाये ताकि हमारी मदद हो सके | 
विदेशी कपड़ो का बहिष्कार 

कहा जाता है की जुलाई 1921 में जब कांग्रेस ने विदेशी कपड़ो का बहिष्कार करने का काम किया तब टाना भगत सामने आये थे | दिसंबर 1921 में कांग्रेस की बैठक हुई थी  गया में उसी समय गाँधी सहित कांग्रेस के सभी उच्च स्तर के नेता सभी उपस्थित  थे उसमें टाना भगतो ने भाग लिया और कुछ तो राँची से पैदल चलकर गया की यात्रा प्रारंभ की इसी बैठक के बाद से टाना भगतों ने पूर्ण रूप से भारत राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए | ये सभी टाना भगत रामगढ़ कांग्रेस गया कांग्रेस से भाग लिए ताकि समय पर कांग्रेस ने जो रणनीति अंग्रेजो के विरुद्ध बनाई उसमे बढ़ -चढ़ कर भगतों ने पूर्ण रूप से सहयोग दिया |  
 
कांग्रेस के विदेशी कपड़ो को बहिष्कार तथा खादी कपड़े पहनने के आहान स्वरूप लोगों ने अपने हाथों पर चरखे का सूत काट कर स्वनिर्मित खादी का उपयोग शुरू कर दिया था | 1927 में साइमन कमीशन के विरुद्ध में भी भाग लिया | 
बारडोली में किसानो द्वारा मालगुजारी न देने के सत्यग्रह से प्रभावित होकर इन टाना भगतों ने भी अंग्रेज सरकार को मालगुजारी नहीं देने का फैसला किया जिसके चलते उन्हें इस आंदोलन की बड़ी महँगी कीमत चुकानी पड़ी | अंग्रेजो ने जमीन की मालगुजारी न देने के कारन जमीन नीलामी कर दी तब भी उन्होंने अपनी अहिंसा भरी आंदोलन को  जारी रखा | इनका कहना  था की गाँधी बाबा का राज होगा तब हम अपनी जमीन वापस लेगे | टाना भगत गाँधी जी के सच्चे समर्थक थे | 

भारत वर्ष के स्वंत्रता आंदोलन में ऐसा कोई जनजातीय समुदाय नहीं मिला जो की आंदोलन के समय गाँधी जी के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर अपना पूरा सहयोग संघर्ष करते आगे बढ़ते चले गए | टाना भगत जी ने अनेको संघर्ष में गाँधी जी सहयोग निभाया एवं उनका साथ दिया जो की देश के हित में आता है जिसमे शुद्ध साहित्य त्यागपूर्ण जीवन जीनाअहिंसा का प्रयोग आदि सभी गाँधी जी के सामाजिक -राजनैतिक दर्शन में आता है जिसे सरकार द्वारा सुविधाएं उपलब्ध कराने के बाउजूद उनकी चिंता जाहिर है इसे सरकार को ध्यान में रखने की जरूरत 
है 

सम्मान 

jatra bhagat ki samman

वीर भगत के सम्मान में  आज भी उन्हें पूजे जाते है ,उनके सम्मान में कई जगह स्मारक ,पार्क मेला आदि लगये जाते है और आज भी टाना भगत को आदिवासियों की दिंचार्य राष्ट्रिय ध्वज के रूप में देखा जाता है |



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