झारखण्ड की राजधानी रांची के तमाड़ में 23 अगस्त 1939 को जन्म लिया एक महान व्यक्ति ने जिसका नाम राम दयाल मुंडा RAM DAYAL MUNDA था | जो आरडी मुंडा के नाम से देश दुनिया महसूर हुए ,वे शिक्षा शास्त्र और समाजशास्त्र के साथ एक लेखक और कलाकार भी थे | उन्होंने आदिवासियों के हितो और सांस्कृतिक की रक्षा के लिए रांची ,पटना ,दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचो तक उन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की |
डॉ. राम दयाल मुंडा का जीवन परिचय
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डॉ. राम दयाल मुंडा DR. RAM DAYAL MUNDA का जन्म 23 अगस्त 1939 को झारखण्ड की राजधानी रांची के लगभग 60 किलोमीटर की दुरी पर दिउड़ी नामक गाँव में हुआ था | राम दयाल मुंडा को बच्चपन से ही शिक्षा और सांस्कृतिक वातावरण से बेहद जुड़ाव रहा है |
उनकी प्रारंभिक शिक्षा 1947 से 1953 तक अमलेसा लूथरन मिशन स्कूल तमाड़ से प्राप्त किया ,उसके बाद माद्यमिक शिक्षा 1953 से 1957 तक खूंटी हाई स्कूल से प्राप्त किया था |
डॉ. राम दयाल मुंडा ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई रांची विश्वविद्यालय ,रांची से 1957 से 1963 को मानव विज्ञान से स्नातकोत्तर प्राप्त की | उसके बाद उच्चस्तर शिक्षा अध्ययन एवं शोध के लिए वे शिकागो विश्वविद्यालय ,अमेरिका चले गए | जहां से उन्होंने 1963 से 1968 तक भाषा विज्ञान में पीएचडी हासिल की | उसके बाद डॉ. राम दयाल ने अमेरिका के ही मिनिसोटा विश्वविधयालय के साउथ एशियाई अध्ययन विभाग में 1981 तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप अध्यापन कार्य किया |
मिनिसोटा विश्वविद्यालय में रहते हुए उनका प्रेम विवाह 1972 में "हेजेल एन्न लुत्ज़ " के साथ हुआ था ,उनके विवाह के कुछ दिनों बाद ही उनका तलाक हो गया ,तलाक के कुछ दिनों बाद 1988 को डॉ. राम दयाल मुंडा का विवाह अमिता मुंडा जी साथ हो गया और उनका एक बेटा हैं जिसका नाम गुंजन इकिर मुंडा हैं |
डॉ. राम दयाल मुंडा का लोक सांस्कृतिक में योगदान
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भारत के आदिवासियों के सांस्कृतिक परम्परागत ,रिति -रिवाज और सवैंधानिक अधिकारों को लेकर वे बहुत सजक थे | आदिवासियों के आंदोलन में उन्होंने हमेशा शिक्षा को महत्वपूर्ण माना है ,इसीलिए वे अमेरिका से प्राध्यापक की नैाकरी छोड़ कर 1980 -82 में रांची लौट आये |
राम दयाल मुंडा आदिवासियों के स्वतंत्र पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहते थे ,वे धर्म को सबसे महत्वपूर्ण मानते थे | उन्होंने आदिवासियों के पारम्परिक धर्म को "आदि धर्म "के रूप में खड़ा किया | वे मानते थे की आदिवासियों का जो धर्म है ,वह मुख्यधारा के सभी धर्मो तथा इस्लाम ,हिन्दू और ईसाई धर्म सेअलग है | उन्होंने "आदि धर्म " नामक पुस्तके भी लिखी है | भारत के आदिवासियों की संस्कृतिक ,समाज ,धर्म ,भाषा ,साहित्य और विश्व आदिवासी आंदोलन और झारखण्ड आंदोलन पर 10 से अधिक पुस्तके और 50 से भी अधिक निबंधन लिख चुके है |
डॉ. राम दयाल मुंडा की रचित "सरहुल मंत्र "इस मंत्र में वे स्वर्ग के परमेश्वर से लेकर धरती के धरती माई और उन्ह सैकड़ो दिवंगत व्यक्तियो को एक साथ बुला कर पंक्ति में बैठने को आमंत्रण देते है और कहते है -
हम तोहरे के बुलात ही ,हम तोहरे से बिनती करत ही ,
हमरे संग तनी बैठ लेवा ,हामरे संग तनी बतियाय लेवा ,
एक दोना हड़िया के रस ,एक पतरी लेटवा भात ,
हामर संग पी लेवा हामर साथे खाय लेवा...... |
उनकी कई संगीत रचनाए लोकप्रिय हुई ,वे दलित और आदिवासी समाज की आवाज थे | 1960 के दशक में डॉ. मुंडा ने एक छात्रा और नर्तक के रूप में संगीतकारों की एक मंडली बनाई ,1980 के दशक "कमेटि ऑन झारखण्ड मैटर "का प्रमुख सदस्य बनाया गया वे देश विदेश में हुई कई कार्यक्रमों में उन्होंने झारखंडी सांस्कृतिक को आगे बढ़ाया उन्होंने "पाइका नृत्य " का प्रदर्शन उन्होंने 90 के दशक में सोवियत रुश में कर दुनिया भर में पहचान दिलाई |
डॉ. राम दयाल मुंडा की पुस्तके और रचनाएँ
डॉ. राम दयाल मुंडा केवल शिक्षाविद और समाजशास्त्री ही नहीं बल्की वे अच्छे लेखक ,कवि और गीतकार भी थे | उन्होंने कई संस्कृतिक और प्रमुख पुस्तके भी लिखी है जिनमे -
1. आदि धर्म Aadi Dharm
आदि धर्म पुस्तक के रचनाकार
2. सरहुल मंत्र /ब ,हाँ , बोंगा Sarhul mantra /ba ,han ,Bonga
3.विवाह मंत्र /आड़ान्दि बोंगा
4. जादुर दुराड़ को
5. हिसिर Hisir
6.सेलेद Seled /Vividha
7. आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल
आदि कई पुस्तके लिखी है | वे पुस्तके लिखने के साथ ही एक प्रबुद्ध रचनाकार भी थे ,उन्होंने ,मुंडारी ,नागपुरी ,पंचपरगनिया ,वैसे आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओ के साथ -साथ हिंदी और अंग्रेजी में गीत -कविताओ के अतिरिक्त गद्य साहित्य में भी रचना की है | उन्होंने कई पुस्तके , कविता ,गीत के साथ ही निबंध भी प्रकाशित किये और वे कई पुस्तके के अनुवाद भी करते थे |
डॉ. राम दयाल मुंडा का सम्मान
डॉ. राम दयाल मुंडा जी रांची विश्वविद्यालय,रांची (श्याम प्रसाद मुखर्जी कॉलेज ) के कुलपति वर्ष 1986 -88 तक रहे, तथा लौक संस्कृतिक में योगदान देने के लिए मुंडा जी को 2007 में " संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार" से सम्मानित किया गया था , 22 मार्च 2010 में राज्यसभा के सांसद बनाए गए , और 2010 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित भी किया गया था | उनके इस महान कार्यो और उनके लौक संस्कृतिक में योगदान के अच्छे कार्यो के लिए आज भी सभी लोग उन्हें कभी भूल नहीं पाए उनके सम्मान में कई पार्क ,संस्थाए, ट्रष्ट,मूर्ति आदि बनाये गए |
डॉ. राम दयाल मुंडा जी आज हमारे बिच नहीं ,उस महान व्यक्ति की मृत्यु 30 सितम्बर शुक्रवार 2011 को कैंसर के कारन उनकी मृत्यु हो गयी थी |
उनके कार्यो और आदिवासी समाज के संस्कृतिक पहचान और सम्मान दिलाने वाले डॉ. राम दयाल मुंडा जी का नाम हमेशा अमर रहेगा | उनके कार्यो के लिए आदिवासियों और सभी के दिलो में हमेशा जिन्दा रहेंगे |
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Dr ramdayal munda jii
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