झारखण्ड एक अनोखा राज्य है जिसमे आप अनेको चीजों को देखते है ,जहां आप अधिकतर प्राकृतिक से सम्बंधित चीजों को देखते है | यह प्राकृतिक पेड़ -पौधो से हरी भरी जंगलो से भरा पड़ा है जो काफी सुन्दर दिखाय देता है | भारत को प्राकृतिक का देश कहा जाता है जिसमे आपको एक छोटा राज्य झारखण्ड भी देखने को मिलेगा जो केवल सरना धर्म तथा सरना स्थल Sarna sthal से जुड़े आदिवासी मिलेंगे |
सरना स्थल
सरना धर्म का इतिहास
Sarna religion history
आज हम आपको सरना धर्म के बारे में बतायेंगे जो केवल झारखण्ड में ही स्थित है ,यह झारखण्ड आदिवासियों के नाम से जाना जाता है जो बहुत समय से चला आ रहा है | पुराने जमाने में लोग केवल पेड़ -पोधो की ही पूजा किया करते थे क्योंकि वे प्राकृतिक से बहुत प्रेम करते थे और वे प्राकृतिक पर ही आश्रित होते थे | पेड़ -पोधो के कारन ही उनका जीवन यापन चलता था उसके जरिये ही वे रोज खाना खाते थे और गुजरा करते थे |
आज भी हमें वही विश्वास लोगो में देखने को मिलती है जिसे आदिवासियों ने उस परम्परा को सरना धर्म एवं सरना स्थल के जरिये कायम रखा है | Sarna religion history in Hindi
सरना स्थल में पूजा
sarna sthal wikipedia in hindi
सरना स्थल में पूजा की बात करे तो काफी धूम धाम से मनाया जाता है ,जिसमे सभी आदिवासी शामिल होते है तथा मुख्य पुजारी पहान भी होते है | जो की केवल यह पूजा आदिवासी ही केवल करते है जो गाँव में अधिकतर किया जाता है | पूजा की सुरुवात वे किसी तरह का कोई त्योहार जब होता है या फिर नवा खान हो जैसे की जब किसान पूजा अर्चना से पहले या किसी चीज को खाने से पहले पूजा करते है जिसमे वे घरो में पुरखो को याद करके ही पूजा करते है जब किसी तरह की दुःख तकलीफ हो तो वे पूजा स्थल में वे मुर्गा ,चावल ,पानी या बकरी की बलि वे देते है और भगवान को याद करते है ताकि सब ठीक हो जाए | sarna caste history
त्योहार के समय वे सभी मिल जुल कर सरना स्थल जाते है जिसमे वे सभी लड़किया लाल पाड साड़ी और लड़के धोती पहनते है और सभी सरना स्थल जाते है और वे ढोल मंदर बजाकर सरना माँ की उपासना करते है साथ ही वे गीत गाते और भजन करते है | यह पूजा वे अपनी जनपति एवं सुखी जीवन तथा खेत खलयान अच्छी हो इसके लिए वे करते है और देवी माँ का अवाहन करते है |
सरहुल पूजा
sarhul festival
आदिवासियों का एक ऐसा भी पर्व होता है जिसमे वे सभी लोग बड़ी ही धूम धाम से मनाते है यह पर्व सरहुल का होता है यह त्योहार वसंत ऋतु के समय मनाया जाता है | इस त्योहार में बहुत से लोग शामिल होते है जिसमे वे अपनी परम्परा को कायम रखते हुए वे सभी लोग लाल पाड़ साड़ी तथा धोती और गमछा का पहनावा पहनते है जिसमे वे काफी सुन्दर दिखते है | सरहुल के समय सभी लोग एक जुट होकर सरना स्थल जाते और ढोल मंदार के साथ देवी सरना माँ का अवाहन करते और पूजा करते है जिसमे वे धरती माँ का अवाहन करके एक मुर्गा चराते जिसे चावल ,पानी देकर समर्पित करते है पेड़ -पौधो तथा प्राकृतिक के अन्य तत्वों की पूजा करते है जहा वे साल भर की भविस्यवाणी करते की किस तरह से यह साल हमारा अच्छा या ख़राब होगा इसकी जानकारी लेते है यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है जिसे आ भी लोग है Sarhul festival in Jharkhand
इस पर्व के दौरान आस पास के सभी लोग शामिल होते और बड़ी उत्साह के साथ मनाते हुए एक दूसरे को बधाय देते है आदिवासियों का मानना है की इस पूजा के बाद नई फसल का उपयोग तथा जैसे धान ,पेड़ो के पत्ते ,फल अच्छे से हो सके इस लिए यह त्योहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है | आदिवासियों के लिए यह त्योहार बहुत ही बड़ा या प्रमुख माना जाता है इस त्योहार के दौरान वे जुलुस भी निकालते है जिसमे वे सभी मिलजुल कर वे कांके रोड से रांची मेन रोड से सीरम टोली ले जाया जाता है | जहा अलग -अलग जगह से अनेको लोग शामिल होते है जहा हजारो हजारो संख्या में लोग दूसरे को बधाय देते है जिसमे केवल आदिवासी ही शामिल होते है |
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